दीपावली – मुदित श्रीवास्तव

जब मुझे पता चला कि मैं एक साल की इस यात्रा में जाने वाला हूँ, तो जो दो तीन सवाल मन में थे उसमें एक दीवाली का त्यौहार भी शामिल था, दीवाली में घर में होना जीवन का एक जरूरी हिस्सा जैसा ही है, तो यह एक सवाल था कि दिवाली इस साल यात्रा में मनेगी कहाँ. दिवाली का दिन आया, हम लोग आज तकनेरी गाँव में थे, यह अशोक नगर के पास एक बहुत छोटा सा गाँव है, मेन रोड से लगभग तीन किलोमीटर अंदर ही है, यहाँ सहारिया आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं,
जब सहारियों को पता चला कि इस साल दिवाली मनाने के लिए वो लोग अकेले नहीं हैं, हमारी यात्रा के लोग उनके साथ होंगें तो उन्होंने काफी उत्साह दिखाया, जैसे जैसे हम गाँव में अंदर घुस रहे थे ऐसा लग रहा था हम गाँव के भीतर नहीं, सच के भीतर घुस रहें हैं, यहाँ लोगों के पास रहने के लिए टूटे फूटे मकान थे, पहनने के लिए उतने ही कपड़े थे जितने कपड़े तन ढंकने के लिए ज़रूरी होते हैं, घरों के भीतर झाँकने की हिम्मत बड़ी मुश्किल से हुई, बाहर से ही उनके चौंकों तक नजर जा रही थी, हर घर में दो चार बर्तन ही दिख रहे थे,
दिए कुछेक घर में ही जल रहे थे, थोड़ी देर पहले हाइवे में दीवाली के रंग दिख रहे थे और अचानक इस गाँव की तरफ मुड़ते ही सब कुछ जैसे ब्लैक एंड व्हाईट हो गया, मुझे एक धक्का सा लगा, जैसे हम गाँव के अंदर घुसे लोग अपने घरों से बाहर निकलकर आने लगे, उनके चेहरों में मुस्कान का कहीं नामों निशान नहीं था, वे बस चकित थे कि इतने सारे लोग विदेश से हमारे गाँव आ गए, जिस जगह हम लोगों को बैठकर बातचीत करनी थी उस जगह हो उन लोगों ने बड़े ही करीने से सजाया था, और मज़े की बात यह थी कि जय जगत के सन्देश अलग अलग भाषाओं जैसे फ्रेंच, जर्मन और इंग्लिश में लिखे हुए थे, वहां के एक युवा कार्यकर्ता ने बताया कि सहारियों ने कुछ पैसा जोड़कर इस जगह को रंगा है, यात्रा के सन्देश अलग अलग भाषाओं में लिखवाएँ हैं, जब यह खबर सबने सुनी तो शायद ही किसी के मुंह से कोई आवाज़ निकली होगी एक मिनट के लिए जैसे सन्नाटा सा रहा, सबकी आँखों में नमी ज़ाहिर होने लगी थी,
हम आज दिवाली इन्हीं के साथ मनाने वाले थे, मना रहे थे, हमने एक पीपल के पेड़ के नीचे बहुत सारे दिए जलाए, उन दियों को उठाकर गाँव के सारे बच्चे अपने-अपने घरों में ले गए, थोड़ी देर बाद पूरा गाँव जगमगा उठा, हमने यह गाँव इसलिए चुना ताकि हम इन सहारियों का छोटा सा गाँव दुनिया की नजर में ला सकें, सरकार की नजर में ला सकें..
जो दिए बच्चे अपने घरों में ले गए वो केवल दिए भर नहीं थे, वो एक उम्मीद के दिए थे, आस के दिए थे, न्याय के दिए थे, उनके हक के दिए थे, इन दियों में वही रोशनी थी जो इस गाँव को हमेशा के लिए रोशन करने की एक शुरुआत साबित हो सकती है,
थोड़ी देर बाद जबी हम सहारियों से विदा लेकर गाँव से वापस शहर की ओर बढ़े तो बाहर जितनी रोशनी फ़ैली हुई थी वो सब फीकी पड़ रही थी, क्यूंकि जिस रोशनी की जरुरत थी वो बाहर नहीं, मन के भीतर थी, मैनें एक लम्बी सांस ली और मन में से अपने आप निकला,
हैप्पी दीवाली !